हिंदी में लिंगभेद पर जो छोटा सा सर्वेक्षण हमने किया था उसके परिणाम बिना किसी हील-हुज्जत के सामने रख रही हूँ. विश्लेषण और चर्चा का काम आप पर छोडती हूँ. सर्वे में पूछा यह गया था कि आप दही, गाजर, प्याज, आत्मा, चर्चा, धारा, ब्लॉग, ईमेल, और गिलास को पुल्लिंग की तरह प्रयोग करते हैं या स्त्रीलिंग की तरह. 19 से लेकर 60 वर्ष तक की आयु वाले कुल 39 लोगों ने अपने जवाब भरे. इनमें से 28 की मातृभाषा हिंदी थी, 11 की कोई और. गैर मातृभाषियों में 5 अमेरिका से,और 1-1 इटली, केरल, पंजाब, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, और उत्तराखंड से थे. मातृभाषियों के उत्तर हिंदी मातृभाषियों में सबसे अधिक दुविधा प्याज और ईमेल के लिंग के बारे में दिखी. प्याज को स्त्रीलिंग बताने वालों में 5 उत्तरप्रदेशी, 3 मध्यप्रदेशी, और 1 दिल्ली वाले थे. उत्तरप्रदेश के 35% और बिहार, उत्तराखंड, और महाराष्ट्र के सभी हिंदी मातृभाषियों ने गाजर को पुल्लिंग बताया; सभी मध्यप्रदेश और राजस्थान वालों ने स्त्रीलिंग. दिलचस्प बात है कि ईमेल को पुल्लिंग बताने वालों में भी बिहार, उत्तराखंड, और महाराष्ट्र के सभी हिंदीभाषी शामिल थे. आत्मा , चर्चा , धारा के स्त्रीलिंग होने पर लगभग सभी एकमत थे. इसी तरह ब्लॉग और गिलास के पुल्लिंग होने पर भी एक राय दिखी. राजस्थान के सभी हिस्सा लेने वाले आत्मा के अलावा सभी शब्दों पर एकमत दिखे. इसी तरह दिल्ली वालों में दही और प्याज को छोड़कर बाकी सभी के लिंगों पर सहमति दिखी. गैर - मातृभाषियों के उत्तर गैर हिंदी मातृभाषियों में ब्लॉग (पु.), प्याज (पु.), और धारा (स्त्री.) पर लगभग सहमति दिखी. आत्मा और धारा के स्त्रीलिंग होने पर सभी अमेरिकी एकमत थे. पंजाब और इटली के वोटों के अनुसार आत्मा पुल्लिंग है. गाजर केरल, महाराष्ट्र, और मध्यप्रदेश के वोटों में पुल्लिंग था तो उत्तराखंड, पंजाब, और इटली के वोटों में स्त्रीलिंग थी. दही को केरल और मध्यप्रदेश के गैर मातृभाषी वोटों ने स्त्रीलिंग माना. चार्ट यह रहा: अब देखें कि शब्दकोश क्या कहते हैं. फ़िलहाल प्लैट्स के हिसाब से देखते हैं. यह प्रतिष्ठित शब्दकोश ऑनलाइन भी उपलब्ध है. ध्यान रखने की बात यह है कि प्लैट्स 100 साल से ज़्यादा पुराना है और संभव है कि कुछ लिंग प्रयोग इन सालों में बदल गए हों. इसके अलावा ईमेल या ब्लॉग जैसे नए शब्द भी इससे नदारद होंगे. अगर आपके पास दूसरे शब्दकोश हों और उनमें भिन्न राय हों तो ज़रूर लिखें. तो देखें प्लैट्स महाशय क्या कहते हैं. दही - पुल्लिंग - H दही dahī, corr. धई dhaʼī [Prk. दहिअं; S. दधि+कं], s.m. गाजर - पुल्लिंग और स्त्रीलिंग - H गाजर gājar, (rustic) गाजिर gājir [Prk. गज्जरं; S. गर्जरं], s.f. & m. प्याज - स्त्रीलिंग - P piyāz, s.f. Onion; यहाँ देख सकते हैं कि न केवल शब्द का उच्चारण और वर्तनी बदल गये हैं, बल्कि अधिकतर हिंदीभाषी अब इसे पुल्लिंग बरतते हैं. एक रुचिकर बात - हिंदी का कांदा पुल्लिंग है और देखा गया है कि आयातित शब्दों के लिंग निर्धारण में पहले से मौजूद समानार्थक शब्दके लिंग का गहरा प्रभाव होता है. आत्मा - पुल्लिंग और स्त्रीलिंग - S आत्मा ātmā, s.m.f. चर्चा - शब्दार्थ भेद के अनुसार पुल्लिंग या स्त्रीलिंग - H चर्चा ćarćā [S. चर्चकः, rt. चर्च्] चर्चा के दो अर्थ हैं. अपने पहले अर्थ अफ़वाह या "Popular talk" के मायनों में यह पुल्लिंगहै. पर अपने दूसरे अर्थों बहस, विचार-विमर्श, या "mention" के लिए प्रयोग में यह स्त्रीलिंगहै. धारा - स्त्रीलिंग - S धारा dhārā,s.f. धारा का पुल्लिंग प्रयोग उर्दू में आम है. आप सबने शकील बदायूँनी का वो गाना ज़रूर सुना होगा - तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा.. तो ये थे हिंदी लिंगभेद सर्वेक्षण के परिणाम. सर्वेक्षण मेरे लिए मज़ेदार और ज्ञानवर्द्धक रहा. भाग लेने वालों का शुक्रिया. और जो बिना भाग लिए भाग लिए उन्हें तख़लिया...
Alpaviram
Har ant mein ek nayi shuruat hai...!!
Tuesday 17 January 2012
Friday 23 December 2011
मध्य प्रदेश : इन्हें भी जीने का हक़ दो....
राष्ट्रीय जनगणना 2011 की रिपोर्ट के अनुसार 1000 लड़कों पर 912 का अनुपात रखने वाले मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में 1000 लड़कों पर मात्र 825 लड़कियाँ जन्म ले रही हैं. यही हाल मध्य प्रदेश के बाकी हिस्सों का है फिर चाहे वह ग्वालियर जैसे शहर हो या उमरिया,डिन्डोरी और मंडला जैसे आदिवासी बहुल जिले,हर जगह लड़कियों की जनसँख्या में भारी कमी देखने को मिलती हैं. विशेषज्ञों की मानी जाये तो इन आंकडों की ज़िम्मेदार इन इलाको में धड़ल्ले से जारी भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति हैं.आज भी यहाँ गर्भ में पल रही लड़कियों का लड़की होना ही सबसे बड़ा जुर्म हैं.
मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों में अगर बच्चियाँ बच भी जाए तो उन्हें कभी छतरपुर और दमोह के सूखे-उजाड़ गाँव में ज़िंदा जला दिया जाता है,तो कभी धमकियों और मार-पीट के नशे में थोपी गई शादी के नाम पर बैतूल और हरदा के हरे-भरे खेतों से उठाकर राजस्थान के संपन्न माने जाने वाले परिवारों में बेच दिया जाता हैं.कई बार तो गरीब झुग्गी-बस्तियों से नन्हीं-2 बच्चियों को चुराकर या खरीदकर मंदसौर और रतलाम के राजमार्गों पर बसे वेश्यालयों में भी बेचा जाता हैं.जहाँ बाछड़ा बंजारा जाति के लोग इन्हें जल्द-से-जल्द शरीर बेचकर पैसे कमाने की मशीन में तब्दील करने के लिए इन्हें कृत्रिम हार्मोन और तीतर-बटेर का मांस जैसे पूरक आहार देते हैं. इतना ही नहीं,इन नन्ही बच्चियों को वेश्यावृत्ति का अभ्यस्त बनाने के लिए उन कमरों में भी सुलाया जाता है जहाँ दूसरी लडकियाँ अपने ग्राहकों के साथ सम्बन्ध बना रही होती हैं. इसके बाद भी अगर बंजारा समुदाय की कोई लड़की या महिला किसी तरह अपने जीवन को एक नई शुरुआत देने का प्रयत्न करे तो मुलताई जैसे कस्बों में उनके सामूहिक बलात्कार के मामले सामने आ जाते हैं. जिनमें पुलिस मामला दर्ज करने तक से इनकार कर देती हैं और अगर गलती से कर भी दे तो जाँच करने से मन कर देती हैं.
लड़कियों पर होने वाले शोषण के मामलों में मध्य प्रदेश के शहर भी पीछे नहीं हैं. यहाँ भी लडकियाँ पूरी तरह सुरक्षित नहीं दिखती. हर शाम सड़कों पर छेड़छाड़ का शिकार होती है और कई बार यह छेड़छाड़ बलात्कार में बदल जाती हैं.पुरुष का अनचाहा आमंत्रण अस्वीकार कर देने पर लड़की का सामूहिक बलात्कार करके उसे जला देना तो यहाँ मानो आम सी बात हो गई हैं. अकेले दमोह में ऐसे मामलों की संख्या 10 से ऊपर हैं और दूसरे क्षेत्रों का तो इससे भी बुरा हाल हैं. वहीं भिंड-मुरैना के बीहड़ों में प्रेम करने का अपराध कर बैठने पर लड़कियों को देश के किसी भी कोने से ढूंढ़ निकलने पर सम्मान और परम्पराओं की झूठी शान की ख़ातिर वही लोग उसका गला घोंट देते हैं जिनकी सेवा वह सालो तक करती रही थी.
अगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडों को देखे तो आज मध्य प्रदेश का समाज और महिला एक-दूसरे के विरोधाभासी शब्दों में तब्दील हो चुके हैं. ताज़ा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ मध्य प्रदेश में हर तीन घंटों में एक बलात्कार होता हैं. 2010 में हुए कुल 3,135 बलात्कार के मामलों के साथ मध्य प्रदेश लगातार दूसरे साल भी महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों के मामलों में निर्लज्जता के साथ देश में सबसे आगे हैं. आदिवासी महिलाओं के साथ अपराध के सिलसिले में भी 316 दर्ज बलात्कारों के मामले अकेले मध्य प्रदेश से हैं. बच्चों, खासकर मासूम बच्चियों के यौन शोषण और छेड़खानी के मामले भी देश में सबसे ज्यादा यहीं दर्ज किए गए. इन सब पर प्रदेश के राजनेताओं और पुलिस के अफसरों का एक सुर में यही कहना है कि "राज्य में अपराधों के बेहतर तरीके से दर्ज होने कि वजह से यहाँ हुए अपराध 'संख्या की दृष्टि' से ज़्यादा नज़र आ रहे हैं." मगर इनसे कोई पूछे कि क्या यह कहने से पहले इन लोगो ने यहाँ की ज़मीनी हकीक़त को देखने की कोशिश भी की हैं? हकीक़त तो यह है की सैकड़ों मासूम लड़कियाँ मध्य प्रदेश में लड़की होने को ही अपना सबसे बड़ा अपराध मानने को अभिशप्त हैं.
Friday 25 November 2011
कार्लोस द जकाल: जिसने 21 सालों तक दुनियाभर की ख़ुफ़िया ऐजेंसियों को झांसा दिया
इलियिच रामीरेज़ साचेज़ उर्फ़ कार्लोस द जकाल,एक ऐसा नाम जिसने 21 सालों तक दुनियाभर की पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों के पसीने छुड़ा दिए.वेश बदलने में निपुण और कई भाषायों में इसे महारत हासिल थी,जिसकी वजह से यह इतने सालों तक कई देशो की पुलिस की आँख में धुल झोंकता रहा.कार्लोस संगठन पी.एफ.एल.पी (पिलिस्तीं को इस्राइल से आज़ाद कराने वाला संगठन).में सन 1970 में भर्ती हुआ था.
27, जून 1975,यह वो तारीख थी जिस दिन कार्लोस ने अपने सबसे पहले सफल जुर्म को अंजाम दिया.एक पार्टी के दौरान डी.एस.टी. की तरफ से पूछताछ के लिए आये 2 पुलिसवालों और 1 मुखबिर पर कार्लोस ने गोलियाँ चलाई.जिसमे उन तीनो की मौत हो गयी.और पार्टी में ही कोई अन्य ही गोली लगने की वजह से 1 घायल हो गया.
लेकिन वो घटना जिसने कार्लोस के नाम को दुनिया के सामने ला खड़ा किया.वह घटी 21 दिसंबर 1975,बिएना,जो की ऑस्ट्रिया की राजधानी है.कार्लोस ने अपने 5 साथियों के साथ ओपेक की मीटिंग में आये सभी अधिकारियो को बंधक बनाया और उन्हें रिहा करने के एवज में अपने 42 पिलिस्तिनी आतंकवादियों को छोड़ने की मांग की.ऑस्ट्रियाई सरकार को कार्लोस की मांग के आगे झुकना पड़ा और फलस्वरूप 24 घंटे के अन्दर ऑस्ट्रियाई सर्कार को 42 आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा.इस काम के लिए साउदी अरब की सरकार ने ईरान की ओर से कार्लोस को 5 मिलियन डॉलर्स दिए थे.यह पता चलने पर पी.एफ.एल.पी. ने कार्लोस को संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया.नतीजन,कार्लोस को सिर छुपाने को भी जगह न थी.ऐसे में उसने तब की जर्मनी पुलिस स्टार्सी से हाथ मिलाया और पैसो के लिए उनके काम करने लगा.स्टार्सी के लिए काम करते हुए भी उसने कई जुर्मो को अंजाम दिया--
- 22 अप्रैल 1982,पेरिस (अल-वतन-अल-अरेबी के दफ्तर में एक कार से बम धमाका)-1 औरत की मौत,63 घायल.
- 25 अगस्त 1983, वेस्ट बर्लिन, जर्मनी (फ्रेंच क्लचर सेंटर में बम धमाका)-1 की मौत,25 घायल.
- 31 दिसंबर 1983,पेरिस रेलवे स्टेशन (एक ट्रेन में बम धमाका)-5 की मौत,50 घायल.
कई लोगो का यह भी मानना है की कार्लोस ने रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी के.जी.बी. के लिए भी काम किया है.
स्टार्सी के लिए काम करने के दौरान ही कार्लोस ने एक महिला आतंकवादी मेग्दालिना कोप्प से शादी की और उनके एक बेटी भी हुई.लेकिन 1982 में एक बम धमाका करने की कोशिश में मेग्दालिना पेरिस में पकड़ी गई.जिसके बाद अगले 9 सालों तक कार्लोस अलग-2 देशो में छुपता रहा.1991 में कार्लोस को सीरिया भी छोड़ना पड़ा और सूडान में पनाह पाई.3 साल तक सूडान में रहने के बाद 1994 में फ्रांस और अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने कार्लोस को सूडान में ढूंढ़ निकला.लेकिन उसे वह से लाने के लिए फ्रांस की सरकार को सूडान की सरकार रिश्वत देनी पड़ी.कार्लोस के पास भागने का कोई रास्ता न रहे इसके लिए कार्लोस के सुरक्षा कर्मियों के द्वारा ही उसे नशे की दवा दी गयी.14 अगस्त 1994 को ऐसी नशे की हालत में ही सूडान से फ्रांस ले जाया गया.
तब से वह फ्रांस की जेल में बंद है.उस पर 1982-83 में हुए बम धमाको का केस चल रहा है.1975 के केस में उसे उम्रकैद की सज़ा सुनाई जा चुकी है.हाल ही में कार्लोस को धमाको के लिए भी ज़िम्मेदार ठहराया जा गया है.जिसके लिए उसे दोबारा उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई.आज कार्लोस 62 वर्ष का है.तो उम्रकैद की सज़ा कहा तक उन लोगो के साथ न्याय कर सकती है,जो कार्लोस के खूनी खेल के मोहरे बने.कार्लोस के इस पागलपन ने 18 लोगो की जान ली और 200 से भी ज्यादा लोग घायल हुए.70 और 80 के दशक में कार्लोस खौफ और आतंक का पर्याय था.ऐसे इंसान के लिए अगर देखा जाये तो दो जन्मों की उम्रकैद भी कम है और फ़ासी तो बिलकुल नाकाफी है.
Tuesday 25 October 2011
चेनुगापल्ली सुशीला:एक प्रयास जिसने जगाई कई और की आस
हमारे देश में जहाँ एक ओर बाल विवाह जैसी कुप्रथा के खिलाफ कई सख्त कानून ओर कड़े कदम उठाये गए.वही दूसरी ओर यह कुरीति आज भी भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों खासकर राजस्थान,मध्य प्रदेश,बिहार और आंध्र प्रदेश के पिछड़े इलाको में आज भी पैर पसारे खड़ी है.यह एक ऐसी कुप्रथा है जिसने न जाने कितने ही मासूम बच्चो से उनका बचपन छीन कर उन पर 'ज़िम्मेदारी' जैसा भारी-भरकम शब्द लाद दिया जाता हैं जबकि इस शब्द का महत्व तो दूर यह बच्चे इसका अर्थ भी ठीक से नहीं जानते.
आन्ध्र प्रदेश के रेड्डी ज़िला की रहने वाली 'चेनुगापल्ली सुशीला' भी इन्ही बच्चों में से एक थी.मगर अपनी कोशिश और लड़ने के जस्बे ने उसे इन बच्चों से अलग पहचान दी.चेनुगापल्ली सुशीला का विवाह 12 वर्ष की उम्र में हुआ लेकिन इस बंधन से मुक्ति उसे विवाह के 2 साल बाद,6 महीने की लम्बी लड़ाई के बाद मिली.सुशीला का पति उसे पढने से रोकता था जो की सुशीला का सपना था.अपने इसी हक के लिए सुशीला ने आवाज़ उठाई.इस केस काव इसलिए भी ज्यादा बन जाता हैं क्यूंकि सुशीला एक दलित परिवार से सम्बन्ध रखती है और कुछ बेकार की दखियानूसी परंपराओ के मुताबिक दलितों को अनपद रखना और उनके मानवाधिकारों को कुचलना कोई अपराधी है.जब सुशीला के सहने की शक्ति ख़त्म होने लगी तो उसने अपने माता-पिता से मदद की गुहार लगायी.सुशीला का कहना था की उसका पति शराब पी कर उसके साथ गाँववालो के सामने उसके साथ मारपीट करता और कोई बी उसकी सहायता के लिए आगे नहीं आता.अपनी बच्चो की ऐसी हालत देखकर सुशीला के माता-पिता उसे अपने घर ले गए.जहाँ से सुशीला ने अपनी लड़ाई आगे बढाई.सुशीला के पुलिस के पास जाने के बाद और आत्महत्या की धमकी देने की वजह से गाँव की पंचायत ने भी सुशीला की जिद्द के आगे अपने घुटने टेके और चेनुगापल्ली सुशीला को अपनी इस शादी के बंधन से और अपने शराबी पति से आज़ादी मिली.इस कार्य एक स्थानीय एन.जी.ओ ने भी बहोत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
सुशीला के इस साहसी कदम के बाद,सुशीला अपने जैसी कई और लडकियों के लिए आदर्श बनी.जिनमे से 2 उसकी सहेलियां माईना और अर्चना थी और बाकी की 4 बाल वधुयों को भी अपने लिए लड़ने की प्रेरणा मिली.अगर सुशीला जैसी कुछ और लडकियाँ अपने हक के लिए खड़ी हो जाये तो शायद समाज में कुछ जागरूकता आये और दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनकर एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर सकती है.कोशिशे बहुत है मगर इनकी स्तिथि आज भी चिंता जनक है.
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