Har ant mein ek nayi shuruat hai...!!



Friday, 23 December 2011

मध्य प्रदेश : इन्हें भी जीने का हक़ दो....



राष्ट्रीय जनगणना 2011 की रिपोर्ट के अनुसार 1000 लड़कों पर 912 का अनुपात रखने वाले मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में 1000 लड़कों पर मात्र  825  लड़कियाँ जन्म ले रही हैं. यही हाल मध्य प्रदेश के बाकी हिस्सों का है फिर चाहे वह ग्वालियर जैसे शहर हो या उमरिया,डिन्डोरी और मंडला जैसे आदिवासी बहुल जिले,हर जगह लड़कियों की जनसँख्या में भारी कमी देखने को मिलती हैं. विशेषज्ञों की मानी जाये तो इन आंकडों की ज़िम्मेदार इन इलाको में धड़ल्ले से जारी भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति हैं.आज भी यहाँ गर्भ में पल रही लड़कियों का लड़की होना ही सबसे बड़ा जुर्म हैं.

मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों में अगर बच्चियाँ बच भी जाए तो उन्हें कभी छतरपुर और दमोह के सूखे-उजाड़ गाँव में ज़िंदा जला दिया जाता है,तो कभी धमकियों और मार-पीट के नशे में थोपी गई शादी के नाम पर बैतूल और हरदा के हरे-भरे खेतों से उठाकर राजस्थान के संपन्न माने जाने वाले परिवारों में बेच दिया जाता हैं.कई बार तो गरीब झुग्गी-बस्तियों से नन्हीं-2 बच्चियों को चुराकर या खरीदकर मंदसौर और रतलाम के राजमार्गों पर बसे वेश्यालयों में भी बेचा जाता हैं.जहाँ बाछड़ा बंजारा जाति के लोग इन्हें जल्द-से-जल्द शरीर बेचकर पैसे कमाने की मशीन में तब्दील करने के लिए इन्हें कृत्रिम हार्मोन और तीतर-बटेर का मांस जैसे पूरक आहार देते हैं. इतना ही नहीं,इन नन्ही बच्चियों को वेश्यावृत्ति का अभ्यस्त बनाने के लिए उन कमरों में भी सुलाया जाता है जहाँ दूसरी लडकियाँ अपने ग्राहकों के साथ सम्बन्ध बना रही होती हैं. इसके बाद भी अगर बंजारा समुदाय की कोई लड़की या महिला किसी तरह अपने जीवन को एक नई शुरुआत देने का प्रयत्न करे तो मुलताई जैसे कस्बों में उनके सामूहिक बलात्कार के मामले सामने आ जाते हैं. जिनमें पुलिस मामला दर्ज करने तक से इनकार कर देती हैं और अगर गलती से कर भी दे तो जाँच करने से मन कर देती हैं.

लड़कियों पर होने वाले शोषण के मामलों में मध्य प्रदेश के शहर भी पीछे नहीं हैं. यहाँ भी लडकियाँ पूरी तरह सुरक्षित नहीं दिखती. हर शाम सड़कों पर छेड़छाड़ का शिकार होती है और कई बार यह छेड़छाड़ बलात्कार में बदल जाती हैं.पुरुष का अनचाहा आमंत्रण अस्वीकार कर देने पर लड़की का सामूहिक बलात्कार करके उसे जला देना तो यहाँ मानो आम सी बात हो गई हैं. अकेले दमोह में ऐसे मामलों की संख्या 10 से ऊपर हैं और दूसरे क्षेत्रों का तो इससे भी बुरा हाल हैं. वहीं भिंड-मुरैना के बीहड़ों में प्रेम करने का अपराध कर बैठने पर लड़कियों को देश के किसी भी कोने से ढूंढ़ निकलने पर सम्मान और परम्पराओं की झूठी शान की ख़ातिर वही लोग उसका गला घोंट देते हैं जिनकी सेवा वह सालो तक करती रही थी.

अगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडों को देखे तो आज मध्य प्रदेश का समाज और महिला एक-दूसरे के विरोधाभासी शब्दों में तब्दील हो चुके हैं. ताज़ा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ मध्य प्रदेश में हर तीन घंटों में एक बलात्कार होता हैं. 2010 में हुए कुल 3,135 बलात्कार के मामलों के साथ मध्य प्रदेश लगातार दूसरे साल भी महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों के मामलों में निर्लज्जता के साथ देश में सबसे आगे हैं. आदिवासी महिलाओं के साथ अपराध के सिलसिले में भी 316 दर्ज बलात्कारों के मामले अकेले मध्य प्रदेश से हैं. बच्चों, खासकर मासूम बच्चियों के यौन शोषण और छेड़खानी के मामले भी देश में सबसे ज्यादा यहीं दर्ज किए गए. इन सब पर प्रदेश के राजनेताओं और पुलिस के अफसरों का एक सुर में यही कहना है कि "राज्य में अपराधों के बेहतर तरीके से दर्ज होने कि वजह से यहाँ हुए अपराध 'संख्या की दृष्टि' से ज़्यादा नज़र आ रहे हैं." मगर इनसे कोई पूछे कि क्या यह कहने से पहले इन लोगो ने यहाँ की ज़मीनी हकीक़त को देखने की कोशिश भी की हैं? हकीक़त तो यह है की सैकड़ों मासूम लड़कियाँ मध्य प्रदेश में लड़की होने को ही अपना सबसे बड़ा अपराध मानने को अभिशप्त हैं.