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Tuesday, 25 October 2011

चेनुगापल्ली सुशीला:एक प्रयास जिसने जगाई कई और की आस


                                                                                  


हमारे देश में जहाँ एक ओर बाल विवाह जैसी कुप्रथा के खिलाफ कई सख्त कानून ओर कड़े कदम उठाये गए.वही दूसरी ओर यह कुरीति आज भी भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों खासकर राजस्थान,मध्य प्रदेश,बिहार और आंध्र प्रदेश के पिछड़े इलाको में आज भी पैर पसारे खड़ी है.यह एक ऐसी कुप्रथा है जिसने न जाने कितने ही मासूम बच्चो से उनका बचपन छीन कर उन पर 'ज़िम्मेदारी' जैसा भारी-भरकम शब्द लाद दिया जाता हैं जबकि इस शब्द का महत्व तो दूर यह बच्चे इसका अर्थ भी ठीक से नहीं जानते.

आन्ध्र प्रदेश के  रेड्डी ज़िला की रहने वाली 'चेनुगापल्ली सुशीला' भी इन्ही बच्चों में से एक थी.मगर अपनी कोशिश और लड़ने के जस्बे ने उसे इन बच्चों से अलग पहचान दी.चेनुगापल्ली सुशीला का विवाह 12 वर्ष की उम्र में हुआ लेकिन इस बंधन से मुक्ति उसे विवाह के 2 साल बाद,6 महीने की लम्बी लड़ाई के बाद मिली.सुशीला का पति उसे पढने से रोकता था जो की सुशीला का सपना था.अपने इसी हक के लिए सुशीला ने आवाज़ उठाई.इस केस काव इसलिए भी ज्यादा बन जाता हैं क्यूंकि सुशीला एक दलित परिवार से सम्बन्ध रखती है और कुछ बेकार की दखियानूसी परंपराओ के मुताबिक दलितों को अनपद रखना और उनके मानवाधिकारों को कुचलना कोई अपराधी है.जब सुशीला के सहने की शक्ति ख़त्म होने लगी तो उसने अपने माता-पिता से मदद की गुहार लगायी.सुशीला का कहना था की उसका पति शराब पी कर उसके साथ गाँववालो के सामने उसके साथ मारपीट करता और कोई बी उसकी सहायता के लिए आगे नहीं आता.अपनी बच्चो की ऐसी हालत देखकर सुशीला के माता-पिता उसे अपने घर ले गए.जहाँ से सुशीला ने अपनी लड़ाई आगे बढाई.सुशीला के पुलिस के पास जाने के बाद और आत्महत्या की धमकी देने की वजह से गाँव की पंचायत ने भी सुशीला की जिद्द के आगे अपने घुटने टेके और चेनुगापल्ली सुशीला को अपनी इस शादी के बंधन से और अपने शराबी पति से आज़ादी मिली.इस कार्य एक स्थानीय एन.जी.ओ ने भी बहोत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
  
सुशीला के इस साहसी कदम के बाद,सुशीला अपने जैसी कई और लडकियों के लिए आदर्श बनी.जिनमे से 2 उसकी सहेलियां माईना और अर्चना थी और बाकी की 4 बाल वधुयों को भी अपने लिए लड़ने की प्रेरणा मिली.अगर सुशीला जैसी कुछ और लडकियाँ अपने हक के लिए खड़ी हो जाये तो शायद समाज में कुछ जागरूकता आये और दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनकर एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर सकती है.कोशिशे बहुत है मगर इनकी स्तिथि आज भी चिंता जनक है.